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________________ ६५ 1 गारोरे || शू० ।। ५ ॥ मेघ सरिषा मोटा मुनिश्वर । कियो पादुप गमण संथारारे ॥ खोलो में नौव छतां तन त्याग्यो । एक मास पहली गुण धारोरे ॥ शू० || ६ || सालिभद्र में घनें सरोषा । ज्यांरो मुख माल तन श्रोकारे । त्यांपिण मास मास खमण तप कौधा । बले पादप गमा संथारारे ॥ शू० ॥७॥ रोग रहित तीर्थंकरनो तन । ते पण लेवे वाष्ट उदिरोरे ॥ तो सहजांही रोगादिक उपना आइ । तो समा परिणामां सहै शूर बौरोरे शू० ॥ ८ ॥ इत्यादिक मुनि हामों देखो । से कष्ट पड्यां नहीं काचारे || अल्पकालमें शिव सुख पायें। शूर शिरोमणी साचारे || शू० ॥ ६ ॥ नरकादिक दुःख तिब्र बेदना | नौव सहि अनन्तौ बारोरे ॥ तो किंचित बेदना उपना महामुनि । सहै आणी मनं हर्ष अपारोरे ॥ शू० ॥ १० ॥ ए बेदना थौ हवै कर्म निर्जरा ए बेदना थौ कटै कमेरे ॥ पुन्धरा घाट बंधे शुभ जोगे । बले हुवे निर्जरा धमेरे || शू० ॥ ११ ॥ समचितबेदन सुखरी कारण । एबेदन कट कमेरे ॥ सुर शिवना सुख लहै अनापम । बले हुवै निर्जरा धर्मोरे || शू० ||१२|| समभावे सह्य होवे निर्जरा एकंत । असम भाव सह्य होवे पाप 1 R Ε M
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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