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॥ ढाल । पाह २ खुब खुली है गोरे तनपर कालो चुन्दड़ी वाह २ सीताफे
खोलेमें हणुमन्त न्हाखी मुन्दड़ी (एदेशी) सनडो लाग्वाही अन्नदाता आपर नाम में नौ। हामा कर मुज ने ले चालो शिवपुर धाममे जौ ॥ मैंती धरज कर शिर नामी। अवता श्रवण करो तुम खामी । टोल न बिजे अंतरयामौ ॥ ए मांकड़ी ॥ श्रीभिक्षु बसु पारे ओपतायो । ए तो गणिवर गुणनिधि कालू। निशदिन रस काया प्रतिपालु, दिन उडारण परम दयालु ॥ मन १॥ जननी छोगां कुचे जनमियाजी। वप्ता सूल शशी सुत निको, वारु कोठारी कुल टोको, शहर सखर छापुरगढ़ तीखो॥ २॥ लघुवय माता साथे संजम लियोजौ। उदाम जान छान वर कौधो, वारु समय वांच रस लोधो, डालगगि लख गणपद दोषो । म० ३ । वरपत वाणी सघन सुहामणोजी । बहु विध सनवंछित मुखकरणी, पातो पाप पंक परहरगी, चित घर सुनत तास दुःख टरणी ॥ ४ ॥ कीर्ति वेती फोलो दशों दिशाजी, ग्रहण पुरिन्दर निन वधु रहेलो, ते पाहै सम मति में चाल सहेली, तिहां आपां रमस्यां दिक्षु भेलो ॥ ५ ॥ कार्ति वोलौ संतो सोलो पुरंदरीह, मैं तो तुम साधे नहीं पावं, महो निश