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आद करैया, भ्रम हरैया भारौ ।। पाखंड दमन रमन जिन मतमे, भिक्षु भये अवतारौ ॥ मैं शीश धगा ॥१॥ जिन अाज्ञा सिर धार गछाधिप, सौमा बहु बिंध बांधी। जन प्रतिबोधौ स्वर्गमिधाया, साठे, अनसन साधौगा।। सिद्ध पाट गह घाट थाट कर, गुण मणि माट दयाल । छोगां नन्द चन्द, जिम शीतल, भवि,पंकज बिकसाल ॥ में पाया परूगा लूल नन्दक: मैं माया पलंगा।। पाय पारगा-मैं शौश धरूंगा स्वाम चरण ॥३॥, गिरा अपूरख धाराधर सम, बरषावत गेनधारौ। उन्मूलत बंबल कुमिथ्या, सिंचत गनबन क्यारी ।। मैं पाय० ॥ ४ ॥ काप रोप कर कौति तिहारी, फेलो. जक्ता मझारौ। जैसे जल बिच तेल विंदुवो, दुग्धः मध्य जिम वारी ।। ५॥ ग्रहण सूर शशि बेग तेग धर, गमन करत गरानारी। बश नहिं आवौ तब दे दोन बैठे हाथ पसारी ॥६॥ इन्द्र कहै, ए जगको लछौ; लोक कहै इन्द्रानी। संशय हरन कहै जानौ ए, काल कौरति जानौ ॥७॥ जश, मामो ए तेरो कौरति, भखी रहो. ध्रुवतारी। चिरंजीवो प्रभु कोटि दिवारौ, अरजी. एह हमारी॥८॥ शुभ बत्सर शर, अश्व तपासित, सप्तमी उत्सव मेरा। चतुर गढ़में चतुर चंग चित, ,सोवन हर्ष घणेराः ॥,मैं. पाय परूंगा ॥ ६ ॥ इति ॥ .. ..