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उत्पतिया बुधि लायक लायन्न
मेख अवी सन हर्षित होवै।। शासग शोल चढ़ाय करी, .. .
वर काल गणोश भवौ मन मोवै ॥८॥
श्रीकालूगणीके गुणाकी ढाल ।
कवित वीड़ मारवाड़हुक खेडू मेदमाटहुने, कडू देश मालव के सुकृत विभागी है। केद् हरियानके ढंढारक थलोदी क्षेतू, मच्छ गुजरातहुके धर्म अनुरागी है। श्राविक वो श्राविका लाये पर्दे पंकजमे हर्ष हर्ष शये चित्त स्वाम लिव लागौ है। सोहन कहत सर्व सूरति निहार तेरी, काल गणधारौ तूं तो सखर सौभागी है। ! . ; ॥ ढाल १ ली ॥ सपने मोलाकी में योगन बनूंगी योगन बनूंगी ।
वैरागन बनूंगी अ० ( भैरवी) खास चरन मेरो शोश धगा, गोश · धरूगा से सुति बन्गा हाम ए बाड़ी॥ श्रादनाथ जिम