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________________ ( ५६ ) गिरा घन वर्षी जिम प्रौष्ट झड़ मण्डी बाज, भवी मन सांभल श्रानन्द अति पायोनी 1 सभामें जिनन्द ज्यूं सुरिन्द ज्यूं गणिन्द दोपे, | मानुं उडुगण में ज्यं चंद मुख दायोजी । कहै मुनि अष्टापद कैसे मैं बनाय कहूं, माणक ना गुणाकरो पार नहीं पायोजी । ॥ सवैया ॥ बाल पणें तज ओक भये, ܟ वर साधु महाव्रत पांडवधारी योग्य भणे दुनियां मुखसे, कहै नाथ रहो तुम आनन्दकारी । सूर्य गतौ भ्रम रूप अपाटव, 1 मेट दियो चित्त में हुंसियारी तेज प्रताप दिप्यो अधिको, एहवो गयी डाल महा सुखकारी ॥ ॥ परबत पाट मुनेश जिनेश, दिनेश सुरेश तरेश ज्यं सोहै । प्रेम चकोर निशापति पेखत, तेस भवो गणो चानन शोधै ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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