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गिरा घन वर्षी जिम प्रौष्ट झड़ मण्डी बाज,
भवी मन सांभल श्रानन्द अति पायोनी
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सभामें जिनन्द ज्यूं सुरिन्द ज्यूं गणिन्द दोपे,
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मानुं उडुगण में ज्यं चंद मुख दायोजी । कहै मुनि अष्टापद कैसे मैं बनाय कहूं,
माणक ना गुणाकरो पार नहीं पायोजी ।
॥ सवैया ॥
बाल पणें तज ओक भये,
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वर साधु महाव्रत पांडवधारी
योग्य भणे दुनियां मुखसे,
कहै नाथ रहो तुम आनन्दकारी ।
सूर्य गतौ भ्रम रूप अपाटव,
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मेट दियो चित्त में हुंसियारी
तेज प्रताप दिप्यो अधिको,
एहवो गयी डाल महा सुखकारी ॥ ॥ परबत पाट मुनेश जिनेश,
दिनेश सुरेश तरेश ज्यं सोहै ।
प्रेम चकोर निशापति पेखत,
तेस भवो गणो चानन शोधै ।