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श्री जिनराज तणे पट छाजत,
राजत खाम उजागर सारौ। उचल कौत फवे जगमें,
वर प्राज महा पुन्यवंत उदारौ। धर्क जिसी अवतार भयो,
जन पंकज कुं विकशावनहारौ। प्रात समय उर नास ग्टूं,
नित माहय जीत सदा जयकारौ ॥४॥
॥ कवित ॥
विनय विवेक वर विमल विनीत वारू,
पण्डित प्रवीण नाण युगपद दियोजी। विड़द महेश ज्यूं सुरेश ज्यूं प्रत्यक्ष दीपै,
चर्म मिन आणारूप वच्च कर लियोनी। क्रान्ति मान लपन रतीश ज्यूं पधिक सोहै,
अविचल चंचु मन हर्षे अति पियोगी। गुणको गम्भीर नाण जौत गणो कृपा कर,
मघवा सुनिनें वेद तीर्थ नाथ कियोनी ॥५॥ सर्व तुग योग्य गयौ पाखंउल पेय करी,
सरल भद्रीया पुन्यर्वत मन भायोजी।