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( ५७ ) पंचम आरके मांय भव्य जन ताग्नको, ।।
प्रगट्या उजागर श्री भिक्षुगी सारौ है ॥ १ ॥ हस्व वय मांय निज मात पिता छोड़ कर,
भिक्षु गौ पास लियो चरण सुख धामी है। न्याय नौत निपुण , विलोक गणौरान पद,
• दियो हद कियो जिन शासनमें नामी है। मुक्ति वधू लेवा चित्त हूंस दिन ग्रात लगी,
.. प्रवल प्रतापी दक्ष नाथ शिवगामी है। गुणको समंद ताय पार गुरु पावै नाय,
ऐसी सुख साज गणो दीर्घमाल खामी है ॥२॥
..॥ सवैया
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शासन बोर जिनन्द तणे .कर्म फंद मिटावण सारंग धारी। ___ ज्ञान क्रिया उजवाल गणाधिप, -. ::... पाषण्ड : जकुं पेलणहारी।
__ वाण सुधा बरषाय भविजन, ... ... .... .... बोध पमाय कियाः ब्रतधारी। ___ लोक उद्दार कियो अधिको, .....। ' ... ... एहवो गणो राय शशि ब्रह्मचारी ॥३॥