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गगापति काप्यां गाढ़ा रहारौ । हेजी समचित शामगा मांहे हुलसोरौ ॥ नन्दण ॥ ८॥ भाड डोड चित से स आगोरी। हेजौ मोह कर्म गे तज दो न मीरा ॥ नन्दगा ॥६॥ खल खोलास्यांरा याद करी रौ। हेजो अचल रहो पिगा मतिरे सुसारी ॥ नन्दप ॥ १० ॥ बार वार सुं कहिय तुनेरी। हेजी अडिग पगो येती गणमे वतारौ ॥ नन्दगा ॥ ११॥ उगगीसे गुणतीस फागुगागे। हेजी जयजश आगामें सुख विलसोरी ॥ नन्दगा ॥ १२ ॥
RECENER " श्राचार्य गुण माला। RECAREFREEEKC
6 कवित हंस ज्यूं प्रकाश कर मिथ्याध्वांत मेट गणि,
पापंड के छोड़ जिन आगा सिरधारी है। साजा अगामाज्ञा दया दोन सहु गोलखाय,
बताव्रत मुद्ध नव तत्व सुविचारी है। सस्यता ममाय जिन शासनको दृढ़ कर,
वांधी मर्याद चिहु तीर्य हितकारी है।