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कौति अहनो ए ॥ १५॥: अनंग अजिता जग जन पूंजिता, पुष्यचुला ने प्रभावती! ए ॥ विश्व विख्याता कीमित दाता, सोलमी सती पद्मावती ए ॥१६॥ वोर भाखौ शास्ले साखी, उदय रतन भाखे मुदाए ॥ वहागा वाहतां जे नर भणशे, ते लेश सुखसंपदाए ॥१७॥इति॥
जयाचाय कृत.. श्रीभिखणजी स्वामीके गुणाकी ढाल ।
नन्दण बन भिक्ष गणमे बमोरी। हेजौ प्राण नाव तोडू पग म खौसोरी ॥ नन्दगा ॥१॥ गण मांहि ज्ञान ध्यान शोभेरौ। हेजी दीपक मंदिर मांहे जिसोरौ॥ नन्दण ! २॥ अवनीतको देशना न दौपेरौ। हेजी गणिका तणे शिणगार निसोरी॥ नन्दगा ॥३॥ टालोकड़री भणवो न शोभेरी । हेजी नाक बिना, ओतो 'मुखड़ो जिसोरौ॥ नन्दण ॥ ४ ॥ दुःखदादू खुद्र जोवाः सरौषोरौ। हेजी नंदक टालो कड़ बमण, निसोरौ ॥ नन्दण ॥ ५ ॥ शासण में रङ्ग रत्ता रहोगे। हेजी सुर शिव पद मांहि बास बसारौ॥ नन्दण ॥ ६ ॥ भागबले भिखु गण पायोरी। हेजी रतन चिंतामण पिणं न इसोरौ ॥ नन्दण ॥ ७ ॥