SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिननी आग्न्या, तिणमें धर्म बतावै हो॥ सो ॥ ११ ॥ सूत्तग्में जिन भाषियो, तेहियो दान दिरावै हो, दान कुपातरनें दीयां, देता आडा न आवे हो ॥ सो ॥ १२॥ वरजगों तो जिहां हो रह्यो मुनि बहिरण जावै हो, देखत सुगत फकौर कों, तो पाछाफिर आवै हो, ॥ सो ॥ १३ ॥ नव तत्व निर्णय नित करै, समकित ने सरधावै हो, मुक्ति नगर मुसकिल घणों, तिणरो मार्ग बतावै हो ॥ सो ॥ १४ ॥ तेरा वचन विमासने सूत्तर सौख सौखावै हो, तिण बयणांसं भर्तमे, भवियगा को चलावै हो ॥ सो ॥ १५ ॥ आप समकित औषधी, वेद भोजन पचावे हो, तेरापंथी वैद ज्यों, धर्म भोजन रूचावे हो ॥ सो ॥ १६ ॥ मैल खोट प्रते काढ़वा, सोनी सोनो तावे हो, ज्यं तेरापंथी परखीया, हृदय न्याय ल्याव हो ॥ सो ॥ १७ ॥ तेरापंथ ओलख्यां माछे टूजो दाय न आवे हो, अमृत भोजन जोसियां कृप्तस कुगारवादे हो ॥ सो ॥ १८ ॥ कहै कथादिवारता, सूत्तर में मिलावै हो, तुज वचनांस नहीं मिले ताकं तुरत उडावै हो ॥ सो ॥ १६ ॥ सूत्र न्यायें पाखंडभगो, भीखनजी बोलखावै हो, तेरापंथ ते धारियो, दया धर्म वतावै हो ॥ सो ॥ २० ॥
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy