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________________ ( . ५१ ) है, के निवेद्य गावेही, सावक काम संसारका, तैतो न चावै हो । सो # २ ॥ जाच्चां बिन चित्त में एक ढङ्कलो, कग्सूं नांहि उठावे हो, भोगतज्या आमण तणां, मांठी नज़र न ल्यावे हो | सो ॥ ३ रत्न अनें - कवडी भयौं, नहीं रखें रखावै हो, ने जे उपग्रयः जिण कह्या, तिसुं अधिक न ल्यावे हो । सो ॥ ४ ॥ पंच महाव्रत पालता, नव विध शौल मलावे हो, सुमति गुप्त बारह भेदसूं, पूरव, कर्म 4 खपावे हो, ॥ सो ॥ ५ ॥ संजम सतरह भेद सुं, रूडोगेत निर्भाव हो, परिशह चायां संग्राम में, सूरा जिस साहमा ध्यावे हो ! सो ॥ ६ ॥ बावन तजे, गुण सत्तावीस पावै हो, दोष बयां-लिस टालके, असग्गादिक ल्यावे हो ॥ सो ॥ ७ ॥ अनाचार 3 न कान कनागत कार्ये, तिदिशि नहीं ध्यावे हो, ताक २ तेगपंथी, ताजा घर नहीं जावे हो । सो ॥ ८ ॥ निन्दत छेदत ज्यो कोई, ति नांही - रिसावे हो, कोईकेदातादानको, तिवसूं राग यावे हो ॥ सो ॥ ६॥ कमल कादासें दूर रहै, जिस जगमें नांहि लिपावे हो, थामी धानक छांड नें, बासा दूर दिरावे हो ॥ सो ॥ १० ॥ हिन्सा धर्म उडायन, दया धर्म दिपावै हो, निहां २ 1 + -
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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