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________________ ( ५० ) गत दुःख बिडारसौ ॥ जन्म मरगा जाख मिट वि। पावे सुख अपारसी ॥ श्रद्धा ॥ ११ ॥ मत्सर नाव साधांसं राख। वेगोडू पुन्य परवारसौ ॥ इण भव मांहि निजरा देखो। बिटला हुवे बिकारसौ ॥ श्रद्धा ॥ १२ ॥ गुण विना सेवा करे साधारौ। नहाँ सरे गरन लिगारसौ॥ को हौ या पाचारी भापही डुवे। तिहां तुज केम निस्तारसौ ॥ श्रद्धा ॥ १३ ॥ सुर सुख सवै जे नर पावै। तप कर देही गारसौ ॥ पंच आश्रव परहरो प्राणौ। ममता मनरौ मारसी ॥ श्रद्धा ॥ १४ ॥ तिया तिरे ने तिरसी बोला। नहीं करे पाप लिगारसौ, उत्तम वयग धर शिर ऊपर। ते उतरे भव पारसौ ॥ श्रद्धा ॥ १५ ॥ उगणीस वीस विद चवदस। मास कातिक सुख कारसी ॥ शहर राजगढ़ दिपमालका जोड़ करौ तंत सारसो । श्रद्धा ॥ १६ ॥ * तेग़पंथ ओलखणां की ढाल * भाप हणें नहीं ग्रागावं, नहीं' कहिनें हणावें हो, हणतांने सलो न चिन्तवै, ऐसी दया पलावै हो सोही तेरामंध पावै हो । १ ॥ के तो मुंन ग्रहोर
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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