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॥ ५ ॥ जप्त जाप खपत पाप ॥ तप्त हि मिटायो 11 जग अछेरो पायो ॥ ६ ॥
मल्लि देव त्रिविधि सेव ॥ उगगौसे पासोज तीन कृष्ण सुदिन आयो ॥ कुम्भनंदन कर आनंद || हर्षथो में गायो ॥ म० ॥ ७ ॥
श्री मुनिसुव्रत जिनस्तवन ।
शोरठ ।
भरतजी भूप भयाछो वैरागी ।
सुमित नंदन श्रीमुनिसुव्रत । जगत नाथ जिन जाणो ॥ चारित्र लेइ केवल उपजायो ॥ उपशम रसनौ वागौरा || प्रभुजी आप प्रबल बड़ भागौ ॥ १ ॥ विभुवन दीपक सागौरा ॥ प्र० ॥ श्र० एकयौ | चौवीस अतिशय पे चोसवाणौ ॥ निरखत सुर इन्द्राणी ॥ संवेग रसनी वाणी सांभल || हर्षस्युं पांख्यां भराणौरा ॥ प्र० ॥ भा० ॥ २ ॥ शब्द रूप रस गंध अने स्पर्श प्रात कूल न हुवै तुम भागै ।। ज्यं पंच दर्शन यास्यूं पग नहीं मांडे | तिम अशुभ शब्दादिक भागैरा ॥ प्र० ॥ मा० ||३|| सुर कृत जलस्थल पुप्फ पुजवर ॥ तेांडो चित दोनो ॥ तुज निश्वास सुगंध मुख परिमल मनभ्रमर महा लौनोरा ॥ प्र० ॥ भा० ॥४॥ पंचेन्द्रो सुर नर तिरि तुमस्युं ॥ किम हुवै दुखदायी ॥ एकेंद्री