________________
{ २२१ पंखो पाला घाल देवल मझे, इंडा मेलव से तिणे मांहिजौ। तें निजरां पडें कुगुरां तो, तो बाला दे तुरत पडायजौ ॥ जो० ॥ २८॥ कई इंडा पंखौ जीवां मारें, कई उड़ता जाय आकासजी। तिणमें धर्म परुमै पापिया, करै जीवां रो बिनासजी ॥ जो० ॥२६॥ जे अनारज आव देस उपरे, जब करे अकारज काम जी। दुख उपजावे रांक गरीब ने, फिर फिर मारे नगर ने गामजी ॥ जी० ॥३०॥ तिम कुगुरु अनारज सारिखा, त्यांरा दुष्ट घणा परिणामजी । ते पिण गांवां नगरां फिरता थकां, मरावे पंखियां रा ग्रासजी ॥ जी० ॥३१॥ अनारज देस मार गयां पिछे, बले ग्राम नगर वेसें कमजौ। अनारज फेर अावे तिहां, तो बले मार करे घमसानजी ॥ जौ० ॥३२॥ ज्यूँ कुगुरु बिहार किया पछ, पंखौ फेर आला घाले लागजी । बले कुगुरू आवे तिण ग्राम में, पंख्यां रो जाणो अभागजी ॥ जौ० ॥ ३३ ॥ मोटा विरद महाजन रा कुल मझे, बाजे जीव दया प्रतिपालजी । पिण कुगुरु तिण भरमाविया, पाडै पंखियारा मालजी ॥ जौ० ॥३४॥ अनारज ग्राम नगर मास्यां पक्छ, कई आणे मन में पश्चातापजी। कुगुरु जीव मार हर्षित हुदै, त्यारे हिंसा धर्मोरी थाप जौ ॥ जो० ॥ ३५ ॥ अनारज करै कतल जौवां तणी,