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( १२. ), शुक्ल ध्यान रूप जलकरौ ॥ साहेबजी ॥ थया शीत लिभूत महाभाग्यहो ॥ निस्ने हो ॥ सू० ॥ ४ ॥ इंद्रिय नोइन्द्रिय आकरा ॥ साहेबजी ॥ दुर्जय नै दुर्दा तहो । निस्ने हो । तें जीता मन थिर करी ॥ साहेबजी ॥ धरि उपशम चित शांतिहो ॥ निस्ने हो ॥ सू० ॥५॥ अंतरजामी आपरो ॥ साहेबजौ ॥ ध्यान धरु दिन रैनहो॥ निस्ने हो ॥ उवाही दिशा कद आवसी ॥ साहेबजी॥ होसी उत्कृष्टो चैनही ।। निस्ने हो ।। सू० ॥६॥ उगखोसे पूनम भाद्रवी ॥ साहेबजी ॥ शीतल मिलवा काजहो ॥ निस्नेही ॥ शीतल जिननीने समरिया ।। साहेवजी ॥ हियो शीतल हुओ आजहो ॥ निस्ने हो । सूः ॥७॥
श्री श्रेयांसजिन स्तवन ।
(पुत्रवसुदेवनो एदेशी) मोचमार्गश्रेयशोभता ॥ धाग्या खाम श्रेयांस उदाररे॥ जेजेश्रेय वस्तु संसारमें ॥ ते ते आप करी अङ्गीकाररे ॥ ते ते आपकरी अंगीकार श्रेयांस जिनेश्वरु प्रणम् नित्य वेकर जोड़रे ॥ १ ॥ समिति गुप्ति दुःधर घणा ॥ धर्म शुक्र ध्यान उदारर ॥ एश्रेय वस्तु शिव दायनी । माप
आदरी हर्ष अपाररे ॥ श्रे० ॥२॥ तन चंचलता मेटनें। पद्मासन पाप विराजरे ॥ उत्कृष्टो ध्यान तणो कियो।
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