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आलम्बन श्रौनिनराजरे ॥ श्रे० ॥ ३ ॥ इन्द्रिय विषय विकारथौ ॥ नरकादि रुलियो जोवरे ॥ किंपाक फलनी उपमा ॥ रहिये दूर थौ दूर सदीवरे ॥ श्र० ॥ ४ ॥ संयम तप जप शौलए ॥ शिव सांधन महा सुखकाररे॥ अनित्य अशरण अनंतए ॥ ध्यायो निर्मल ध्यान उदाररे ॥श्रे० ॥ ५ ॥ स्त्रियादिक ना सङ्गते ॥ मालम्बनदुःख दाताररे ॥ अशुव आलम्बन छोड़ने॥ धयो ध्यान आलम्बन साररे ॥ श्रे० ॥ ६ ॥ शरणे आयो तुज साहिबा ॥ करु बारंबार नमस्काररे ॥ उगणौसै पूनम भाद्रवे ॥ मुज वा जय जय काररे ॥ श्रे० ॥ ७॥
श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ।
(इम जाप जपो श्रीनवकारं एदेशी) हादशमा जिनवर भजिये ॥ राग द्वेष मच्छर माया तजिये ॥ प्रभु लालबरण तन छिव जाणी॥ प्रभुवासुतपूज्य भजले प्राणी ॥ १ ॥ बनिता जाणों वैतरणी ॥ शिव संदर वरवा इस घणौ ॥ काम भोग तज्या किंपाक जाणी॥ प्र० ॥ २ ॥ अञ्जन मञ्जन स्युं अलगा ॥ वलि पुष्प विले. पन नहीं विलगा॥ कर्म काठ्या ध्यान मुद्रा ठाणौ ॥प्र. ॥३॥ इन्द्र थकी अधिका ओपै ॥ करुणागर कदेव नहीं कोप ॥ .वर शाकर दूध जिसी बाणी ॥ प्र० ॥ ४ ॥ स्त्री स्नेह पाशा दुदंता ॥ कह्या नरक निगोद तणा पंथा ॥