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अभिरामी हो ॥ निरख निरख धाप नहौं एहवो रूप अमामौहो ॥ ॥ ४ ॥ मधु मकरंद तणोपरे । सुर नर करत सलामौहो ॥ तोपिण राग व्यापै नहौं। जोल्यो मोह हरामोहो ॥ सु० ॥५॥ जे जोधा जगमें घणा ॥ सिंघ साथ संग्रामोहो॥ ते मन इन्द्रिय बश करी॥ जोड़ी केवल पामीहो ॥ सु० ॥ ६॥ उगणीसै पुनम भाद्रवी प्रणमु शिरनामोहो॥ मनचिन्तित वस्तु मिलै ॥ रटियां जिन खामीही ॥ सु० ॥ ७॥
श्री शीतलजिन स्तवन । (हुं देवा आइ ओलंभड़ो सासुजी एदेशी) शीतलजिन शिवदायका ॥ साहेबजी ॥ शीतल चंद समान हो ॥ निस्नेही ॥ शीतल अमृत सारिखा ॥ साहिबजी ॥ तप्त मिट तुम ध्यानहो ॥ निस्नेही ॥ सूरत थारी मन बसौ साहेबजी ॥१॥ बंदे निदे तोमणी साहिबजी ॥ राग द्वेष नहौं तामहो ॥ निस्नेही ॥ मोह दावानल तें मेटियो ॥ साहेबजौ ॥ गुणनिष्पन्न तुम नाम हो ॥ निस्नेही ॥ सू० ॥ २ ॥ नृत्य करै तुज पागलें साहेबजौ ॥ इन्द्राणी सुरनारहो । निस्ने हो ॥ राग भाव नहीं उपजै ॥ साहेबनौ ॥ तेअंतर तप्त निवारहो .॥ निस्ने हो ॥ सू० ॥ ३॥ क्रोध मान माया लोभए ॥ साहेबजौ ॥ अग्निसु अधिको मागहो ॥ निस्ने हो ।