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२०१ ) वल गण बिन द्रवा ने रे, ति रा किण विध चालसौ कूड़ा फेन रे ॥ द्र० ॥ ३४ ॥ बले' बेटी उण रे घर जाय जनमोयो रे तिण रो माछल भव नो बेटो तो बाप रे । ने माने निकेवल गुण बिन द्वा ने रे, तो बेटा ने लेखवयो बाप रे ॥ द्र० ॥ ३५ ॥ दूण गे बाप पाछल भव बेटो हुतो रे, तिण गे हो जे बेटो हुवा आप रे । जे माने निकवल गुग बिना द्रवा में रे, ते बाप ने बेटो गिगा लेगो ताय रे ॥ द्र० ॥ ३६ मेणादिक सर्व जीवनी रे, त्यांग बेटो हतो पाछल भव आप रे । जे माने निकवल गुण बिन दव्य में रे, तो इगा लेख सगलाई दूण रा बाप रे ॥ द्० ॥ ३७ ॥ जो उ सगला ने बाप न लेखवे रे, तो उगा रौ श्रद्धा दूण लेखे कूड़ रे । जे माने निकवल गुगा बिन द्रवा ने रे, त्यांरो चिहु गत में होसौ घयो फितूर रे ॥ द्र० ॥३८॥ बले काका बाबादिक सगपणा तेहनें है, सगलाई हुआ अनन्तौ बार रे । जे माने निकवल गुण बिन दवा ने रे, ते किण विध करसी बिचार रे ॥ द्र० ॥ ३६ ॥ अरिहंत सिद्ध साधु इण जोवरे रे, जे हुवा न्यातीला बार अनन्त रे। जे साने निकवल गुगा रे, त्यांरे लेखे तो सगला एक भांत रे ॥ १० ॥ ४० ॥ औ कुण कुण मारै में कुण कुण पूजसौ रे, तिगा गे के