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( २०८ ) तो यांने पिण बांदणा बारम्बार रे॥ द्र० ॥ २७॥ जमाली ने कंडरीकादिक जे हुआ रे, ते विगया के संजम समकित खोय रे । जे द्रवे साधु ने बांदे गुण विना रे, तो यांने पिग वांदणा नीचा होय रे ॥ द्र. ॥२८॥ इत्यादिका भागल होया कुसीयालीवा रे त्यांरो द्रव्ये निक्षेपी न गयो ताम रे। जे द्रव्ये साधु ने बांदे गुण विना रे, तो यांने मिण बांदे ले ले नाम रे ॥ द्र० ॥ २६ ॥ जो उन वांद या भाव सं रे, तो उन रो मत उन थाप उथाप रे । जो द्रवा साधु ने वांदे गुण विना रे, त्यांचे के पोते बाहला पाप रे ॥ द्र० ॥ ३० ॥ उण स्त्री परगी सं घर वासा कियो रे, ते तो माता होती माछला भव मांय रे । जो माने कवल गुगा विन द्रवा ले रे, तो स्त्रीने लेखवणी माय रे ॥ द्र० ॥ ३१ ॥ उण जन्म देई ने मा मोटी कियो २.ते तो स्त्री होती पाउला मझार रे । जे माने निकल गुण विन ट्रवा ने रे, इण लेखे माता ने गिण लगी नार रे ॥द्र० ॥ ३२॥ के साता ने लेखव लेगी जीरे, के स्त्री ने लेखवणी माय रे, जे माने निकवल द्रवा ने रे, इण ही श्रद्धा री ओहोज उंधी चाय के ॥ द्र० ॥ ३३ ॥ उप रे जीव हुआ में स्त्री रे, ते मगला ही जीव हुआ मा बहिन रे। जे माने निक