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( १६८ ) अलके, मांहि भल घोड़िया असवार वणावे। त्यारे सुरमणा रो त्रास न दोसे, वेरो दुश्मन हटावन अरथ न बावे ॥ था० ॥ २६ ॥ ज्यं चौबोस आदि दे अनेक तीर्थंकर जिणा रो यघातथा आकार वणवि। त्यां से जानादिक गुणा आसन न दोसै, ए तारगा तर ने काम न भाव॥ था० ॥ २७॥ जो राखे सरोसा कागद रा कटकारो, तो इज्जत जाय रहे नहौ आबा । ज्यं प्रतिमां ने वांदे तिण र भरोस, ते चहगत होसौ घणा खरावो ॥ था० ॥२८॥ पालर दोऊ करलें हाथी वगाया, ते चढ़वाने काम कादे नहीं आया। ज्यू प्रतिमा वगाव देवल सांय बेसारी, आ पिण जागाजो थाघी माया ॥ था० ॥ २६ ॥ उगारी स्त्री मुवां जो फेर परगीजे तो उगा पिगा श्रद्धा गया है ली। गुण विनाकार वाई तिचा लेवे, स्त्री जाति कर लेगी हनी ॥ घा० ॥ ३० ॥ भरतार .सुवां स्त्री चोवे तो. वो पिगा श्रद्धा गई के सुलो । गुगा विन आकार वांद तिण लेखि, अवतार रे साकार कर लेगोठ लो ॥ था. ॥३१॥ स्त्री गै गरज ठली नहीं सारे भरतार री गरज सारे नहौं ठूलो। दूगा दृष्टान्त आकार वांदे, त्यांरो पिण जापाजो अोहोज सूलो ॥ था० ॥ ३२ ॥ वालपणमे रमें डावड़ा डावड़ी, विकल पणे ठूली न ठूला । ज्यं भग