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________________ । १६७ ) रेतरा लाडु में सवाद नहीं है तो प्रतिमा में गुण मूल म जाणो। गुण बिन बसतु ते काम न आवे, समझो रे थे मूढ़ अयाणो ॥ था० ॥ १६ ॥ पत्थर कारने प्रतिमा बणावे, तिण प्रतिमा ने भगवंत ज्य सेवे। तिण ने तिणही पत्थर रा रुपया देवे ताऊ चोखा रूपया में क्यूं नहीं लेवे ॥ था० ॥ २० ॥ वृत तैलादि करी सादी देव ने, पथर रा रूपया ले पल नहौं बांधे। ते आठा तणा भगवत वणाया, ताज भगवंत किण लेखे बांदै ॥ था० ॥ २१ ॥ भाठा रा रुपया लेई सादी देवे ता, बौं में पड़ जावे जाबकता टोटो। भाठा रा प्रभु बांद तिण हो मत, खोटो रे नियोवल खाटी ॥ था० ॥ २२ ॥ रूपा तणा रूपिया रे ठिकाणे, पत्थर ग कमया कदे न हाले। तो तरण तारण भगवंतरी ठोर, भाठा वा भगवंत क्षिणा विध चाले ॥ था० ॥२३॥ साठा रा रुपया ले घाले खजाना, त्यारे काम पड़े जब घणो सिहावे। ज्यं भाठारा भगवंत थामना बांदे, तो परसव मांहे घणो पिसतावे ॥ था० ॥ २४ ॥ परख बिना खाय रूपया में खोटी, ते तो रूपा तणो भोल हे प्रतापी। ए भगवंत में खोटा खाधा किण लेख, या तो प्रतिमा दौसे पत्थर रौ पापो ॥ था० ॥ २५ ॥ फेईक कागद ऊपर कटक
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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