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( १९६ ) से कहे शाई उणा में तब तो सूधा बोले भावसंएमा । कहै आकार के तो पिया गुना नहीं मांहि, तिसने शीश नसावां कमा ॥ था० ॥ १२ ॥ जे थापना आकार मान निकेवल, ते गुगारा शरगो ले छै किण न्याया। घारा खोटो श्रद्धा अटक्या जाव नावै, जब साच वालो जव आया छ ठाया ॥ था० ॥ १३ ॥ ते कहवा ने ठाय आया जाणा, पिगा मनमें न भौजे अज्ञानी छूढ़। त्यारि कुगरू तणा डंक करड़ा लाग्या, ते मिग किरण विध छोडे खोटो रूढ़ ॥ घा० ॥१४॥ ए घापना थापना कर रह्या खुरख, पिश स्थापना गै समझ न काया। कुगगं रा भरमावा रख, चोड़े मारग भूला जायौ ॥ था० ॥ १५ ॥ जो ऊ हाथो सझल्यां भांत कपड़ी वैचे जव, ज्यांग फाड़ी फाड़ कर दोय टुकड़ा। जे गुगा विन आकार वांद तिगा लखे, तो हाथी मछल्यां मारण ग टुका ॥ घा० ॥ १६ ॥ कहै हाथी मछल्यां भांत कपड़ो फाड़या स्यं हाथो मछत्त्यां मारगो न लागे करमा। तो भगवंतरे आकार प्रतिमा बांयां, तिण में गिथय म जागो घरमा ॥ था० ॥ १७ ॥ किय रा सगा मनेही व्याही नातीला, तिगारे रेतग लाडु वणाय ने मेले । ते अगवंत रे आकार प्रतिमा पूजे । ते रेतगनाडु पाझा काय नै ठेले । घा० ॥१८॥ कहे