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( १८३ )
दूसरा आवस्सग की आज्ञा ।
लोगस्सक पाटी |
॥ इति दूजो आवस्सग समाप्त ॥
तीजा आवरसंगकी आज्ञा ।
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दोय खमा समणां कहणा ।
॥ तीजो आवस्संग समाप्त ॥
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चौथा आवस्सगकी आज्ञा ।
उभाथकां ध्यान में कह्या सा प्रगट कहणा ।
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८ आठ पाटी बैठा थकां कही जिगांकी विगत |
१ तस्स सव्वस्तको पाटो ।
२ एक नवकार ।
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३ करेमि भरते सामाईयं को पाटो |
४ चत्तारि मंगलंको पाटो |
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५ इच्छामि ठामि पड़िक्कमेड जो मैं देवसौ ।
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६ इच्छामि पड़िक्कमेड को पाटो ।.
७ आगमें तिबिहे को पाटौ ।
८ दंसण श्री समकोत्ते को पाटौ ।
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ए आठ पाटी कही, बारे व्रत अतिचार सहित कहणा ।
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पांच संलेखणा का अतिचार कहणा ।
अठारे पाप स्थानक कहा ।