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( १८२ ) १ प्रथम श्रावसरग सासायक में ।
१ आवस्सई इच्छामिणं भाते। २ नवकार एक। ३ करमि मते सामाईयं ।। ४ इच्छामिठामि काउसम्ग। ५ तम्सुत्तरी की पाटी।
ध्यानमें 8 नन्नाणवे अतिचार । भागने तिविहे पन्नते की पाटी तिगामें ज्ञानका चवदे अतिचार। दंसण श्रीससत्ते को पाटी तिणमें समकितका ५ पातिचार। बारे व्रतांका अतिचार ६० साठ तथा १५ पंदरह
कर्मदान । इह लोग संसह पउगीको पाटौ अतिचार ५
संलेखणांका। अठारे पाप स्थानक कहगा। इच्छामि ठामि चालोउं जो मैं देवसौ पायारकउ
ए माटी काहगी। एक नवकार काह पारलगो ।
॥ इति प्रथम आवसग समाप्त ॥