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________________ ( १३२ ) कर्म तो एकान्त पाप छै, वेदनी, नाम, गोत्र, आयु ए च्यार वार्म पुन्य पाप दोन हो छ । ॥ लड़ी २० बोसमो ॥ १ धर्म नीव को अजीव जीव है। २ धर्म सावा के निरवद्य निश्वद्य है। ३ धर्म आता मांहि के बाहिर श्री बितनाग देवको आजा मांहि है। ४ धर्स चोर के साइकार साइकार छ । ५. धर्म रूपी के अरूगौ अरूपी है। ६ धस छोडवा जोग के आदरका जोग पादरवा ___ नोग है। ७ धर्म पुन्च के पाप दोन नहीं किगन्याय धम ता नौव के पुन्य पाप अजीब है। ॥ लडी २१ इकोसमी ॥ १ चधर्म जीव के अजीब जीव के। २ यधर्म सावध के निरवद्य सावध छै । ३ अधर्स चोर के माहकार चोर है। ४ धर्म आज्ञा मांहि की वाहिर; वाहिर के। ५ अधर्म रूपी के बापी रूपों है। ..
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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