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( १३१ )
४ अधर्म और अधर्मास्ति एक के दोय दाय, कियान्याय, अधर्म तो जौव है, अधर्मास्ति अजीब है ।
॥ लड़ी १९ उन्नीसमी ॥
५ पुन्य अनें पुन्यवान एक के दोय दोय, किणन्याय, पुन्य तो अजीव है पुन्यवान जीव है होय दोय, किणन्याय,
६ पाप अने पापा एक
पाप तो अजीव के पापो जौव के ।
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७ कर्म अलें कमी को करता एकके दोय होय, किन्याय, कर्म तो अजीव है; कर्मारो करता !
नोव है ।
|| लडी १६ सोलहमी ॥
॥
१ कर्म खोव के अनौव अव ।
२ कर्म रूप के अरूपी रूपौ है ।
३ कर्म सावदा निरवद्य; दोनूं नहीं अजीव है | ४ कर्म चोरके साहूकार, दोनूं नहीं; अजीव है | ५ कर्स आज्ञा मांहिके बाहिर; दोनं नहीं अजीव है । ६ कर्म छांडवा नोग के आदरवा जोग; छांडवा जोग है ।
७ आठ कमी में पुज्य कितना पाप कितना ज्ञानावर्णी, दर्शगावर्णी, मोहनीय, अंतराय, ए च्यार