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________________ ( १३० ) २ पात्रो, रजोहरा, चादर चोलपट्टो आदि भंड उपगरण; छवसे काम नवमें झोण छवमें पुद्गल, नवसे' अजीव । ३ धानको दागों; छवसे कोण नवमें कोगा छवमें जीव, नवले जोन । ४ रुख (वृक्ष) छवमें कोय नवौं कोग्य छवमें जीव. नवले जीव । ५ तावड़ो छायां छवसे कोण नवमें' कोण छवमें पुगल, नवखें अजीव । ६ दिन रात छवसे कोण नवमें कोण छवमें काल, नवसे अजीव । ७ शौसिद्ध सगवान छवसे कोण नवमें काण छवमें जीव, नवसें नौव मोक्ष। ॥ लड़ो १८ अठारमी ।। १ पुन्य और धर्म एकके दोय, दोय किणन्याय, पुन्च तो अजीव है, धर्म जीव छ। २ पुन्य और धर्मास्ति एक के दोय; दोय, कि न्याय, पुन्च ती रूपी के धर्मास्ति अरूपी छ । ३ धर्म और धर्मास्ति एक के दोय दाय, किण न्याय, धर्म तो जीव है, धर्मास्ति पजीव छ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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