SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 64 ( १२० ) I २ जीव चोरके साहूकार, दोनूं नहीं कियन्याय चोर साहूकार तो जीव हवे ये अजीव है । ३ पुन्य चोरके साहूकार, दोनूं नहीं अजीव है ४ पाप चोरी साहूकार, दोनूं नहीं अजीव है । ५ आस्रव चोरके साहूकार, दोनूं है किणन्याय च्यार आसव तो चोर है, अनें अशुभ जोग प चोर छै शुभ जोग साहूकार है । ६ संवर चोर साहकार, साहूकार है कि न्याय कर्म रोकवारा परिणाम साहूकार छै 1 ७ निर्जरा चोरके साहूकार, साहूकार है कि न्याय कर्म तोड़वारा परिणाम साहूकार है । ८ बंध चोरके साहूकार, दोनूं नहीं अजीव है | ८ मोच चोर साहकार साहूकार किणन्याय कर्म मूंकायकर सिद्ध थया ते साहूकार है ॥ लड़ी छटी जीव छांडवा जोगके आदरवा जोगकी || 3 १ नीव छांडवा नोग आदरवा जोग छांडवा नोग है किपन्याय पोते नोवनं भाजन करे मेरा जीव पर ममत्व भाव न करे ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy