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________________ . ( १२१ ) २ अजीव छांडवा जोगी आदरवा जोग, छांडवा __ जोग छै किणन्याय अजीव छ। ३ पुन्य छांडवा जोगके आदरवा जोग, छोडवा जोग छै ते किणन्याय पुन्य ते शुभ कर्म पुगल के कर्म ते छोडवा ही जोग छै। ४ पाप छोडवा जोगके बादरवा जोग, छांडवा जोग छै किगन्याय पाप ते अशुभ कर्म छै नौवने दुखदाई के ते छांडवा जोग छै। ५ प्रास्त्रव छांडवा जोगको आदरवा जोग, छांडवा जोग छै किणन्याय आस्तव द्वार जीवरे कर्म लागे छ अास्त्रव कर्म आवानां. बारणा छ ते छांडव। जोग छ। ६ संबर छांडवा जोगके आदरवा जोग, आदरवा जोग छ किन्याय कर्म रोके ते संबर छै ते आदरवा जोग छै। ७ निर्जरा छांडवा जोगके आदरवा जोग, श्रादरवा जोग छै किणन्याय देशथी कर्मः तोडे देशथी जीव उज्जल थाय ते निर्जरा छै ते आदरवा जोग छ। ८ बन्ध छांडवा जोगके अादरवा जोग, छांडवा जोग छै, ते किगन्याय शुभ अशुभ कर्म नो बन्ध छांडवा जोग ही है।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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