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( ११८ ५ अानव आज्ञा मांहिके बारे; दोनंद के, ते विगान्याय, आस्रव नां पांच खेद छै तिगामे मिथ्यात्व अवत प्रमाद कवाय ए च्यार तो आज्ञा बाहिर के अले जोग नां दोय भेद शुभ जोग तो आजा
मांहि के अशुभ जोग आता बाहिर छ। ६ संवर आता मांहि के वाहिर, आजा मांहि के
ते विगान्याय कर्म रोकवारा परिणाम आज्ञा
सांहि छै। ७ निर्जरा आजा मांहिक बाहर, आज्ञा मांहि छै ते किगान्याय कर्म तोडबाग परिणाम आता
सांहि के। ८ वंध बाजा मांहिक बाहिर, दोन नहीं ते किगान्चाय, आज्ञा मांहि वाहिर तो जीव हुवे ए बंध
तो अजीव के दृगन्याय। ६ मोक्ष आज्ञा मांहिके वाहिर, आज्ञा मांहि छै ते किगन्याय, कर्म मंकाय सिद्ध धया ते आजा मे छै ।
॥ लड़ी चौथो जीव अजीवकी ॥ १ जौच ते जीव के अजीव, जीव ते किगान्चाय
सदाकान्त जीवको जीव हमे अजीव कटे हुवे नहीं ।