SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०४ ) च० ॥ २३ ॥ लोक काहै ग्रहै बारमों लागां हों प्राण । भ० । नारखे नरक निगोदसैं नारी नव ग्रैह जांगा। स. च० ॥ २४ ॥ गा संसार असार मैं तिगा मैं माटि गाल । म० । सांणस रखोड मागे जे गावै टोडर माल । भ० च० ॥ २५ ॥ नगर उजीगौं नो राजीयो हरचंद नासें गाय । भ० । सोमला उपर मोहियो नायो नंदियै वुहाय । भ० च० ॥ २६ ॥ जहर दियो निज कंथ नैं नाम जसौदा नार। भ० । कंथ मार काटे चढ़ी गई नरक मंझार । भ० च० ॥२७॥ ब्रह्मदत्त चक्रावत बारमों तेहनौं चुलणों मात । सः । विषैरी वाहि थवी करवा मांडि पुत्र नौं घात ! भ० च० ॥ २८॥ परदेसी राजा तौं सुरोकथा नार । भ० । खार्थ न पुगो जांण नैं माल्यो निज भरतार । भ० ब० ॥ २८ ॥ वरस वारै वन सेविया लिछमण नैं श्रीराम । म० । दसरथ दुख सह्या घणां तो केकैबुरा काम । भ० च० ॥ ३० ॥ कुणक वहल कुमारकै साच्चो माहा संग्राम । म० । हार हाथी नै कारंगों तेतो पद्मावति रा काम । म. च० ॥ ३१ ॥ धारणों नाथ धुजावियो असौनारि अजोग । भ० । मुंज राजा तमो नय कियो ते पिणा नारी तों संजोग । भ. च० ॥३२॥ माहासतक श्रावक वरे हुई रेवंती नार ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy