SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०३ ) भ० । अंग तौखो तरवार ज्यं ईण मास्यो सकल बिरचौ तो बाघण स्युं बुर्गे संकेल । भ० च० ॥ २४ ॥ स्वो अनग्थ सूल । भ० । पाप करौ पोते भरे अंग उपजावे शूल | भ० च० ॥ १५ ॥ मोर तों पर नेहनां बोलें मौठा बोल । भ० । साप से पूछा ईगले पाडलेवे नर भोल । भ० च० ॥ १६ ॥ पुरुष पोतै कपडा जौसी नरगुण नंविं भांत | भ० । नारौ कातर बस मड्यां काटे है दिन रात | भ० च० ||१७|| बाघण बुरौ बन मांयल बिलगी पकडि खाय । भ० । नारौ बाघण बस पड्यां नर न्हासी किहां जाय । भ० च० || १८ || फाटां कांनांरी जोगणी तिन लोकनैं खाय । भ० । जीवंती चुटै कालजो मुवां नर्क ले जाय | भ० च० ॥ १६ ॥ नारौ लखणां नाहेरि करै बचनरो चोट । भ० । केइक सन्त जिन उवस्था लिधौ दया नौं घोट । भ० च० ॥ २० ॥ तौया मदन तलावडी डुब्यो बहु संसार | भ० । केइक उत्तम नर उबस्था सत गुर बचन सम्भाल | भ० च० ॥ २१॥ जिम नलोक जल मांयेलि तौम नारौ पिण जांगण । भ० । वालागौ लोहौ पिये । नारी पिये निज प्रान । भ० च० ॥ २२ ॥ राता कपडा पहरे नैं काठा बांध्या माथारा केस । भ० । हांतां मैंन्ध लगाय नैं ई ठगोरि ठगौयो सारो देस । भ० 1
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy