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________________ ( १०५ ) 1 भ० । भीष्ट करवा भरतार नै आई पोसा संभार । भ० च० ॥ ३३ ॥ देवदत्त सुनार नां पुत्रनी हुई कुपातर नार । भ० | देव छली नै धोन उतरी सुसरा ཧྥེ་ झुठो पाड | भ० च० ॥ ३४ ॥ कपिला पटराणों राजातण तिण कौधौ माह्वतस्युं प्रौत | भ० । तिण आलदे नाहक मरावीयो हुई बहुत फनौत । भ० च० · ॥३५॥ अभिया राणौं नैं कपिला ब्राह्मणी सेठने दोया उपसर्गं अनेक । भ० । सेठ सुदर्शण चलौ योंहीं मन मैं प्रांगण बिबेक । भ० च० ॥ ३६ ॥ श्रोगुण कह्या कुसत्यां तणां कहतांनै' आवै पार । भ० । सतीयां रा अति घणां त्यांरो तो बहुत विस्तार । भ० च० ॥ ३७ ॥ पठे कपिलारै ओगणा तणों चाल्यो है दूधकार | भ० | सेंठनै अंगस्युं भीडीयो पिण सेठन चलीयो लिगार । भ० च० ॥ ३८ ॥ गुण ॥ दुहा ॥ 3 नर नारी दोनुं सरिखा मित्यां अधिको बधै सनेह | सुगणांनें नौगुंणो मौलै तो तटकै तुटै नेह ॥ १ ॥ सेठ डरपै सर्ब नारभ्युं तिणनैं उपसर्ग उपज्यो जांग । एक मासमैं च्यार पोसा करै राते जाय मसांग || २ || कर्म धर्म संभालतां मुखे गमावै काल । किण विध उपसर्ग . उपजै किंण विध आवै आल ॥ ३ ॥ धात्री वाहन १४ 7
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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