SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२ ) एक पुगत प्रावर्तनो, नौवा भौणी घगी छे बात। जोषाः ॥ ३० ॥ अनन्त जीव सुतो गया, जीवा टालो पात्म दाप । नहीं गया नहीं जावसो, जौवा एक निगोदना मोख । जीवा० ॥ ३१ ॥ पाप आलोई आपणा, जीवा यव्रत नाला रोक। तेथी देवलोक जावसौ, जीवा पन्द्रह सव सांहे मोक्ष। जीवा ॥ ३२ ॥ एहवा भाव सुगौ करो, नीवा श्रद्धा शागी नाय । ज्यूँ आयो तिमिहिज गयो, नीवा लख चौगसी मांय । जीवा० ॥ ३३ ॥ कई उत्तस नर चिन्तवे, नौवा जागणे अस्थिर संसार । साचो मार्ग श्रद्धिने, नौवा जाये मुक्ति मंझार । जीवा० ॥३४॥ दान शील तप आवना, जीवा दूगासं गखो प्रेम। क्रोड़ कल्यान छ तेहने, जीवा ऋषि जयमलजी कहे एम। जीवा० ॥ ३५ ॥ ॥ यौवन धन पावणाको ढाल ॥ हाड़ चासका बना ई पृतला, भीतर भस्या रे भगडारा, अपर रङ्ग सुरङ्ग लगाया, कारीगर कारा। यौवन धन पावगाा दिन चारा । ओजी याकी गर्व करै सो गंवारा ॥ १॥ पशुको चामका बनत पन्हया,
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy