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________________ ( ६३ ) 1 नौबत और नगारा । नरको तो चाम कछु काम नहीं पावे, जल बल हा जायगा छारा । यौ० ॥ २ ॥ यह । ५ म 1 संसार सकल बिधि कूठो, झूठो सब परिवारा। कहत कबौर सुनो भाई जौवो, प्रभु भजे निस्तारा । यौ० 1 इ H, ३ ॥ ; 7 Ar J ॥ उपदेश पच्चीसो ॥ + : ( जुहारा, नाटका गढ़ जैपुर बांकारे एदेशी ) चौरासीमै चाक ज्योंरे, करो करो कर्म कठार - घरटौ ज्यों फिरियो घणोरे, पाम्यो दुःख अघोर मुज्ञानी जीवड़ा करणी भल कौजेरे ॥ १ ॥ काज सरे करण कियांरे, भाष गया भगवन्त । अल्प दुखाने बादरयार, आगे सुख अनन्त | मु० ॥ २ ॥ सतगुरु सौख माने नहौरे, राखे खोटो रूट | पुण्य होनाते बापड़ारे, महा मिथ्यात्वी मूठ । सु० । ३. करौने प्राणियार, नरकां करे निवास । भूंडा फल तहां भोगवेरे, नाखे हिये निःश्वास | सु० ॥ ४ ॥ पाप चितारे पाछलारे, अधर्मी सुर भय । जिमि कोधा कर्म: जौवड़ रे, तिमि भुगतावे ताय । सु० ॥ ५ ॥ रोवे भूरे संकज्योंरे, अधिका दुःख अनन्त । यम गाढ़ा पाप 1
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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