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* जैन-गौरव-स्मृतियां
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दयानन्द सरस्वती के जन्म स्थान टंकारियां ( काठियावाड़) में स्थानकवासी जैनों का प्राबल्ल था और बहुत करके इस सम्प्रदाय के प्रभाव से वे मूर्तिपूजा का निषेध करने के लिए प्रेरित हुए । भारत प्रजा के नेता मोहनदास कम चंद गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह का सिद्धांत प्रकट किया इसमें भी जैन भावना का असर स्पष्ट है । गांधीजी कि जन्म से वैष्णव है, अपनी युवावस्था में जैनधर्म की गम्भीर छाया में आये थे । अभ्यास के लिए विलायत जाते समय, जाने के पूर्व जैन साधु वेचरजी ग्वामी के पास अपनी माता के समक्ष मांस मदिरा और नारी का स्पर्श नहीं करने की प्रतिज्ञा ली थी।" गांधीजी ने भी अपनी आत्मकथा में इस बात का निर्देश किया है। उन्होंने यह स्पष्ट कहा है कि मैं जन्म से वैष्णव हूँ तदपि मैंने जैनधर्म से बहुत कुछ ग्रहण किया है । जैनतत्वज्ञ कवि रायचन्द्रजी के सम्पर्क से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ।"
... उक्त उद्धरण से जैनधर्म का वैदिक और अन्य धर्मों पर न्यूनाधिक प्रभाव पड़ा है यह सिद्ध हो जाता है । जैनधर्म और वेद धर्म में कौन प्राचीन है, इसका निर्णय करने के लिए कोई ऐतिहासिक आधार उपलब्ध नहीं है। * इनका यथार्थ और पूरा इतिहास अद्यावधि अज्ञात है। प्राचीन कथाओं के . आधार पर यह कहा जाता है कि-नाभि-पुत्र ऋषभ और तत्पुत्र भरत के द्वारा प्रकट किये हुए सत्यवेद की भावना को मनुष्य भूल गया और वह कालान्तर में मिथ्यात्व में पड़ कर पशु यज्ञ करने लगा पण्डित पर्वत का कथन है कि तीर्थङ्कर मुनि सुव्रतके समय में पशु यज्ञकी उत्पत्ति हुई । वेरिस्टर चम्पतरीय जैन ने सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि "हिन्दुधर्म जैनधर्म की शाखा है।" इस विषय में ग्लाजेनाप ने लिखा है कि जैनियों के इस दावे को कोई ऐतिहासिक आधार प्राप्त नहीं है और जैनों के सिवाय अभी और कोई इस बात को मानता नहीं है तो भी यह बात सर्वथा निर्मूल नहीं है। क्यों कि जैनधर्म ने हिन्दुधर्स पर अनेक विषयों में प्रभाव डाला है। हिन्दुओं के अति प्राचीन धर्मग्रन्थों में जैन भावना के चिन्ह हैं। इस विषय का संशोधन अभी इतना कम है कि स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।" प्रोफेसर हर्टल का कहना है कि मुडकोपनिपद् और जैनधर्म में निकट का सम्पर्क है ।। .
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