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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
अवश्य पड़ा है यह मानना ही पड़ता है। इस सम्बन्ध में जर्मन. प्रोफेसर ___ ग्लाजेनाप ने “जैनधर्म" में लिखा है:. . "निस्संदेह हिन्दु सम्प्रदायों पर जैनधर्म की छाप तो है ही। पशु यज्ञ
के विरुद्ध अहिंसा की भावना तीव्र हुई और खास करके वैष्णव धर्म में · अन्नाहार की भावना की जड़ जमी यह जैन और बौद्ध धर्म की भावना का. परिणाम कहा जा सकता है । वैष्णव धर्म पर जैनधर्म का दूसरा भी प्रभाव पड़ा है । 'जिन' विष्णु का अवतार माने जाते हैं। विष्णु ने ऋषभ के रूप में अर्हत् शास्त्र प्रकट किया, ऐसा पद्मतन्त्र में लिखा है। भागवत पुराण में
और वैष्णवों के दूसरे धर्मग्रन्थों में ऋषभ को विष्णु का अवतार माना गया है ! उसमें ऋषभ के चरित्र के विषय में जो कथा आती है वह जैन कथा से थोड़े अंश में ही मिलती है फिर भी ऋषभ की कथा का वैष्णव ग्रन्थों में आना भी महत्वपूर्ण बात है । वैष्णवों की दार्शनिक सम्प्रदायों में खास तोर पर मध्व के (ई. सं० ११६६-१२७८) ब्रह्म सम्प्रदाय में जैनधर्म की छाया
स्पष्ट है । यह सहज सिद्ध हो सकती है कि मध्व दक्षिण कन्नड में रहता था ... और वहाँ अनेक शताब्दियों से जैनधर्म, मुख्यधर्म था। इसलिए जैनधर्म की ' छाप मध्व सम्प्रदाय पर है। प्रारब्धवाद, श्रेणियाँ आदि मध्व के सिद्धांत __- जैनधर्म के आधार पर रचे गये हों यह असम्भव नहीं है।" .. -.: "शव सम्प्रदाय पर भी जैनधर्म की छाप है। जी. यु. पोप का अनुमान है कि जीव के शुद्ध स्वरूप को आवृत करने वाले तीन पाप या मल का सिद्धांत जैन सिद्धांत के आधार से है । ..... प्रास्रव-कर्म और माया मन का सिद्धांत जैनों के कर्म सिद्धान्त के आधार पर प्रकट हुआ हो, यह वीत अवगणना करने योग्य नहीं है। तदपि इस विषय में विशेष संशोधन की अपेक्षा है । लिंगायतों के धर्म कर्म पर भी जैनधर्म का प्रभाव होना सम्भव है परन्तु इस सम्प्रदाय के विषय में भी शास्त्रीय संशोधन हो तब स्पष्टता. पूर्वक कुछ कहा जा सकता है। राजपुताने में अलखगीर का सम्प्रदाय है। इसका स्थापक लालगीर है। सर जी. ग्रीयर्सन कहते हैं कि उस सम्प्रदाय और जनधम में कई बातों का साम्य है। उसके संशोधन की भी आवश्यकता है।"
. “वर्तमान काल में भी जैनों ने हिन्दुओं के आध्यात्मिक जीवन पर . छाप डाली है । जे. एन. फर्कहार कहता है कि आर्यसमाज के संस्थापक