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________________ जैन-गौरव-स्मृतियाँ - संस्था के छात्रों ने नगर जिले करंजी अदि गांवो में समाज के , भाईयों पर कम्युनिस्टों के विरोधी प्रचार से अत्याचार होने पर वहाँ प्रत्यक्ष जाकर उन्हें संकठ मुक्त किया । आगे भी इसी तरह कमाऊ सेवा व संरक्षण करने का मौका संस्था : गुमावेगी नहीं। ___ व्यायाम के क्षेत्र में संस्था महाराष्ट्र में अत्यन्त मशहूर है । अखिलः महाराष्ट्रीय शारिरीक शिक्षण परिषद् नासिक संन् १६४७ तथा अखिल भारतवर्षीय . शारिरीक शिक्षण परिषद् पूना सन् १९४६ में संन्था के छात्रों के बाटली चलन्सिंग, जालती ड्रीले. मल्लखंव, लाठीलढ़त, मदगाफरी, पट्टा नलवार आदि अनेक अत्यन्त प्रभाव कारी व आश्चर्य जनक शारिरीक प्रयोग हुए थे, जिन्हें देखकर बड़े २ व्यायाम तज्ञ व हजारों प्रेक्षकों ने आश्चर्य व्यक्त कर हार्दिक प्रशंसा की थी। नासिक अधिवेशन में चाटली वलन्सिंग आदि आश्चर्य जनक प्रयोगों की फिल्में ली गई थी। ये फिल्में जगह २ पर सिनेमा में बताई जाती है । कुछ वर्ष पूर्व अ. भा. ओसवाल महा सम्मेलन अजमेर तथा मंदसौर में भी संस्था के छात्रों के ऐसे ही शारिरीक प्रयोग हुए थे, जिन्हें देखकर देश के उपस्थित तमाम सामाजिक नेताओं ने तथा प्रेक्षकों ने आर्य व्यक्त कर बहुत ही प्रशंसा की थी। सन् १६३६ में स्काऊटिंग प्रतियोगिता में बम्बई इलाके में संस्था का पहला नम्बर आया उस के उपलक्ष में तत्कालीन गवर्नर सर लेस्ली विल्सन ने रखी हुई . सर लेस्ली बिल्लन नाम की चांदी की ढाल पुरस्कार रूप में संस्था को प्राप्त हुई थी। हाईस्कूल, प्रायमरी स्कूल, कृषि व गोपालन, छात्रालय, उद्योग मंदिर, नेमिनगर प्रिं. प्रेस, नेमिनगर वृज कार्यालय, नेनिनगर पोस्ट ऑफिस, व्यायाम .. मंदिर, धार्मिक, स्काऊटिंग, बँड, बालवीर वस्तु भंडार व बैंक आदि संस्था के मुख्य २ विभाग है । प्रौद्योगिक विभाग में फिलहाल बुक वाइंडिंग टेलरिंग, पेन्टिग सुतकताई आदि कलाओं का ज्ञान दिया जाता है। स्वतंत्र कॉलेज व जैनयुनिवर्सिटी खोलने की अंतिम महत्वाकांता संस्था ने आगे रखी हैं और इस दिशा में संस्था के प्रयत्न चालू हैं। *श्री सेठ फूलचन्दजी मूथा, अमरावती पीपाड ( मारवाड़ ) निवासी सेठ. चुन्नीलालजी व्यापारार्थ यहाँ आए और "मगनमल चुन्नीलाल" के नाम से फमै स्थापित कर वस्त्र व्यवसाय में प्रवृत्त हुए। अच्छी सफलता प्राप्त की। आजकल फर्म का संचालन श्री फूलचन्दजी अपने भाई श्री भौरीलालजी के सहयोग से करते हैं। आप दोनों वन्धु मिलनसार और धार्मिक प्रवृत्ति के सज्जन हैं। . .. ' नी फूलचन्दजी विगत २५ वर्पो "जैन श्वेताम्बर मन्दिर' तथा श्री राजीवाई : .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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