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जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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वर्मशाला का कार्य अवैतनिक रुप से वहन करते आ रहे हैं । स्थानीय ग्रन्थभण्डार ( लोईब्रेरी ) में भी आपका अतिशय सहयोग है । जैन श्वेताम्बर समाज में ' आपकी बड़ी प्रतिष्ठा है। आपके सुपुत्र श्री प्यारेलालजी उच्च शिक्षा ग्रहण कर · रहे हैं । और युवक समाज में प्रिय हैं। श्री महावीर जैनपुस्तकालय के आप : मन्त्री हैं। आपका परिवार भण्डारी गोत्रोत्पन्न है। . * श्री विरदीचन्दजी अनराजजी मुणोत अमरावती - अपने मूल निवास रियां से आप लगभग ३५ वर्ष पूर्व यहां आए और प्रारम्भ · में "मानमल गुलाबचन्दजी" के यहाँ कार्य किया । आपकी धार्मिक सच्चरित्रता
पूर्ण कार्य प्रणाली से उक्त फर्म पूर्ण सन्तुष्ठ रही। सं० २००१ में अपनी फर्म स्थापित ___ कर बर्तनों का, सैकिण्ड हैण्ड मशीनरी डीलर्स, स्टील ब्रोकर तथा कमीशन एजेण्ट
का काम प्रारम्भ किया । आपकी कार्य प्रणाली स्वल्प समय में ही अच्छी उन्नति करली . श्री विरदी चन्दजी के सुपुत्र श्री अनराजजी एक होनहार और धार्मिक प्रवृत्ति के : युवक है । आप ही के मनोयोग पूर्वक कार्य प्रणाली से फर्म तरकी पर है । काँग्रेस ' कार्यों में भी खूब भाग लेते हैं तथा ४२ के राष्ट्रीय आन्दोलन में आपने भाग लिया
। राजस्थान हितकर मंडल के आप मन्त्री हैं और कॉग्रेस सेवादल के सदस्य - हैं। महावीर मंडल और ओसवाल युवक मंडल के आप प्रधान मन्त्री हैं। . मध्य प्रदेश * श्री सेठ सरदारमलजी नवलचन्दजी पुगलिया-नागपुर ...
११५ वर्ष पूर्व बीकानेर से सेठ भैरोंदानजी नागपुर आप एवं व्यवसाय प्रवत हए । आपने व्यापार में अच्छी सफलता प्राप्त की। अापके ज्येष्ठ भ्राता सेठ कनीरामजी के लाभचन्दजी नामक पुत्र हुए। सं० १६७२ में लाभचन्दजी स्वर्गवासी हए। आपके नेमीचन्दजी और सरदारमलजी नामक पुत्र हुए। श्री नेमीचन्दजी जवाहरमलजी के पुत्र छोगमलजी के दत्तक गये।
सेठ सरदारमलजी-आपका जन्म सं० १६४४ में हुआ। धार्मिक कार्या की ओर आपका विशेष लक्ष्य था । नागपुर के स्थानक भवन बनवाने में आपने वहत सहायता दी । स्थानीय मन्दिर के कलश चढ़ाने में पांच हजार रुपये की इस प्रकार से आपने धार्मिक कार्यों के लिये हजारों का दान दिया। नागपर के लेने समाज में श्राप नामांकित गृहस्थ थे । श्रापके श्री नवलचन्दजी मिलनसार उदार एवं
उत्साही सज्जन है। आपके यहां "सग्दारमल नवलचन्द" के नाम से सोना चांदी. --सर्राफा एवं कमीशन एजेण्ट का काम होता है। * मेसर्स प्रतापचन्द लोगमल धाड़ीवाल. नागपुर
बीकानेर निवासी सेठ प्रतापचन्दी व्यापारार्थ अपने भाई के साथ न