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>>> जैन-गौरव-स्मृतियां ★
किया । महान् क्रान्तिकार के मार्ग में काँटे बिछाये, परन्तु महापुरुष बाधाओं से कब रूका करते हैं ? वे तो अपने निश्चित ध्येय की ओर अविर आगे बढ़ते रहते हैं और साध्य पर पहुँच कर ही विराम लेते हैं । पुर पन्थियों के अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी भगवान् महावीर के सचोट अ सक्रिय उपदेशों ने जनता में क्रान्ति की लहर व्याप्त कर दी । हिंसामय कृत्यों के प्रति जनता में घृणा के भाव पैदा होगये और ब्राह्मण धर्म गुरु के एकाधिपत्य को उसने अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार भगवान् महाव की धर्मक्रान्ति ने तत्कालीन भारत की काया पलट दी ।
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भगवान महावीर के उपदेश का सार थोड़े शब्दों में इस प्रकार दि जा सकता है: - सब जीव जीवन और सुख के अभिलाषी हैं, दुःख मरण सब को अप्रिय है, सब को जीना अच्छा लगता है जीवन सब बल्लभ है। सरना कोई नहीं चाहता अतव जीवो और दूसरे को जीने दे हिंसा की आराधना ही सच्चा धर्म है । यह धर्म ही शुद्ध है, ध्रुव नित्य है, शाश्वत है और सब त्रिकालदर्शी अनुभवियों के अनुभव का नि है । (२) ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये जाति से नहीं किन्तु कर्म से है हैं । जन्मगत जाति का कोई महत्व नहीं । जन्म से ऊँच-नीच का वास्तविक नहीं, मिथ्या है। धर्माचरण और शास्त्र श्रवण का सबको सम अधिकार है । ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म-आत्मा के स्वरूप को जाने और अि धर्म का पालन करे । (३) यज्ञ का अर्थ आत्म वलिदान है जिस में हि होती है वह यज्ञ, वास्तविक यज्ञ नहीं है । (४) आत्मा का उद्धार आत्मा अपने पुरुषार्थं से कर सकता हैं और वह परमात्मा बन सकता है । आ पर लगे हुए कर्म के आवरणों को सम्यग ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम् चारित्र के द्वारा दूर कर प्रत्येक व्यक्ति मुक्ति का अधिकारी हो सकता (५) आत्मा स्वयं अपने कर्मों का कर्त्ता और भोक्ता है । इस तरह भगव महावीर के उपदेश और सिद्धांतों को हम इन चार विभागों के समावि कर सकते हैं: - (१) अहिंसावाद (२) कर्मवाद (३) साम्यवाद और
स्याद्वाद ।
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भगवान् महावीर की अहिंसा प्रधान उपदेश प्रणालीने आचार म में, व्यवहार में हिंसा की पुनः प्रतिष्ठा की। उनकी स्याद्वादमयी उदार ह
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