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________________ जैन गौरव-स्मृतियाँ F कोचर बन्धु, बीकानेर i मेहता जतनलालजी कोचर के पुत्र श्री चम्पालालजी, कन्हैयालालजी, व शिस्त्ररचन्दजी न केवल.जैन समाज के लिए ही गौरव की वस्तु हैं बल्कि बिरले व्यक्तियों में गिनने योग्य है । निरन्तर उन्नति की ओर बढ़ने वाले ये बन्धु राजस्थानः संघ में उच्च सरकारी पदों पर आसीन होते हुए भी तथा विद्वत्ता में भी काफी बंद चढे , होने पर भी इनकी सादगी, सौजन्यता, सहदयता, मिलनसारिता एवं साहित्य प्रेम आदि गुण सहज ही में दर्शक को श्रद्धालु बनाये विना नहीं रहते । रिश्वतखोरी या 'अन्य सरकारी कामों में स्वभावतः पा जाने वाले दुर्गुण मानो इनकीः न्यायप्रियता से डरे हुए से रहने है । ये गुण तीनों भाइयों में समान रूप से पाये जाते हैं। ..... मेहता चम्पालालजी कोचर वी० ए० एल० एल० वीव- . ........... - जन्म सं० १६६५ । १६३१ में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से वी० एल एल. 'वी० की डिग्री। इसके पश्चात बीकानेर स्टेट में सर्विस प्रारम्भ की और तहसीलदार 'नाजिम कन्ट्रोलर आफ प्राइसेज, पेशल अफसर, एलेक्शन्श कमिश्नर, लथा-वीकार नेर डिविजन के कमिश्नर भी १५ अगस्त सन ४६ तक रहे। १९५० में आ नागौर जिले में कलेक्टर तथा डिस्ट्रीक्ट मजिस्ट्रेट का कार्य कर रहे हैं। प्रजा श्राप के कार्यों से अति प्रसन्न हैं। राजकीय जिम्मेदारी के पदों पर रहते हुए भी धार्मिक व सामाजिक जन सेवा के कार्यों में भी पूर्ण सहयोगी रहते है। आप कई वर्षों तक जैन श्वेताम्बर पाठशाला. कन्या पाठशाला के रख कार्यकर्ता मन्त्री तथा उपसभापति व श्रीमहाऔर जैन मगाडल बीकानेर के सभापति. बीकानेर सिटी इम्पूर्व मंट कमेटी के मन्त्री तथा कई न्यूनिसिपेनिटी के प्रेसीडेंट भी रहे हैं। आप श्रीजतनलालजी के बड़े भ्राता महता रतनलालजी के गोद गये। मेहता कन्हया लालजी कोचर श्री ए एल एल. बी.~ श्राप काई नहसीलों में नहमीलदार रहे और अच्छी ख्याति प्रान की। * मेहता शिग्यरचन्दजी कोचर थी. एल. एल. बी० माहित्याचार्य वापान पल तो बीकानेराई कोर्ट में बकालान की. हाईकोर्ट में रजिस्ट्रार.. . ५. परवाना किया। इसके बाद श्राप भीकरणपुर रायमित मगरमिक नामनिदर। वर्तमान में मान मंत्र नगर (कानेराले में मिल हैं। शापी मान्य लखन की श्रीर गनिमीमालिका प्रतिभी |धी दिलवपी का नया नयनान्वर पाठशाला में कन्या पाठ शाला बीकानेर के गया । .. . . . . . . . ........ .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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