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ग्रन्थ के माननीय संहायके सन् १९४५ में बंगाल लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य (एम. एल. ए.) चुने . गए । सन् १९४६ में काशी हिन्दूविश्वविद्यालय के कोर्ट के सदस्य भी चुने गए हैं। स्व० चाबू बहादुरसिंहजी सिंघी ने जिस "मियी जैनग्रन्थमाला" की स्थापना "भारतीय विद्याभवन" वम्बई में की थी उसका खर्च श्री नरेन्द्रसिंह जी अपने ज्येष्ठ भ्राता के साथ संयुक्त रूपसेचला रहे हैं। इस ग्रन्थमाला के निमित्त बाबू बहादुरसिंहजी की मृत्यु के बाद इन वर्षों में १५०००० रु. खर्च किए जा चुके हैं। आपने पावापुरीजी मन्दिर के लिए. १००००) दिये, इसके अतिरिक्त आपने कई विभिन्न संस्थाओं की हजारों का दान दिया इस प्रकार से
आपने लोक हितकारी कार्यों में लाखों का दान कर चुके हैं। आपके पिताजी के बहुमूल्य सिक्के, चित्र, मूर्ति, हस्तलिखित ग्रन्थ आदि का सारा संग्रह आपही के पास है । इस संग्रह के कई सिक्के, मूर्तियाँ, व चित्र तो एसे हैं जो अन्यत्र अप्राप्य है । ग्रीक, कुशान, गुप्त, पठान भुगल आदि साम्राज्य के स्वर्ण मुद्राओं की संख्या डेढ हजार से भी अधिक है । इसके अतिरिक्त कई बादशाहों की बहु मूल्यवस्तुयें, ताम्रपत्र आदि संग्रहित है। *मेसर्स श्रीचन्द गणेशदास गवइया-सरदार शहर ... यह परिवार अपने वैभव और सम्पत्ति के अतिरिक्त मौजन्यता तथा धर्मप्रेम व समाज सेवा आदि गुणों के कारण प्रसिद्ध है। राजस्थान के जैन एवं जैनेतर समाज में इस परिवार का एक विशिष्ट स्थान है। इसी परिवार में सेठ श्रीचन्दजी एक धर्मपरायण तथा योग्य व्यवमायी हो चुके हैं। आपने युवावस्था से ही कठोर ब्राह्मचर्यव्रत का ग्रहण किया, सत्य और न्याय के पथ पर आप अटल रहते थे। सं. १६८६ में आप स्वर्गवासी हुए। · श्री सेट श्रीचन्द्रजी के गणेश दासजी तथा वृद्धिचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । दोनों ही कुशाययुद्धी धर्मपरायण तथा योग्य व्यापारी हो चुके हैं। दोनों बन्धु बीकानेर असेम्बली को, मेम्बर तथा सरदार
शहर नगरपालिका के प्रमुग्य . सदस्य थे। मंठशदासजी
मंद गगशदारी माया को धंगाला गयनमेन्टको पार से दरवार में स्थान (कमी) प्रानवी व्यव.
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