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जैन-गौरव स्मृतियाँ
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आपके अनुज बावू वीरेन्द्रसिंहजी सिंघी एम. एस. सी. बी. एल. एम. एल. ए. तेजस्वी व कार्य कुशल व्यक्ति हैं। बाबू वीरेन्द्रसिंहजी आपके कनिष्ठ भ्राता हैं । आप बी. एस. सी. हैं। श्रीयुत बाबू नरेन्द्रसिंहजी सिंघी,
आपका जन्म सन १९१० में हुआ। सन् १९३१. में बी. एस. सी में श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया एवं "जुबिली स्कालर शिप" प्राप्त की। . सन् सन् १९३२ में एम. एस. सी (जियो लोजी) की एवं सर्वप्रथम रहे एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय सुवर्णपदक प्राप्त किया । सन् १९३२ में बी, एल परीक्षा पास की। पश्चात् व्यवसाय में भाग लेने लगे। अपनी वैज्ञानिक बुद्धि के कारण थोड़े ही दिनों में इस कार्य में कुशलता प्राप्त की "झगडा खण्ड कोयलारिज लिमिटेड" "डाल चन्द बहादुरसिंह" व "सिंघी सन्स लिमिटेड" के डायरेक्टर बने एवं उत्तरोत्तर समृद्ध बना रहे हैं। अपनी व्यवसाय विषयक योग्यता के कारण . "इण्डियन चेम्बर श्राफ कोमर्स" व "इण्डियन माइनिंग फेडरेशन" की कार्य कारिणी के सदस्य भी बनाए गए। "न्यू इण्डिया टूल्स" नामक एक औद्योगिक फेक्टरी भी आपने खोली है। ... सफल विद्यार्थी जीवन व व्यवसायकुशलता के साथ २ सार्वजनिक 'हित.की. दृष्टि भी आपमें पूर्णरूपेण विद्यमान है। बङ्ग दुर्भिक्ष के समय अंजीसगंज व जियागंज के १६००० व्यक्तियों को प्रतिदिन ६ छटाक चावल ८) मन के भाव से दिया जव कि बाजार ११ से २८) रु. मन तक चला गया था। इस लोकहितकारी कार्य में सिंधी परिवार ने ढाई लाख की हानि उठाई । यह एक अत्यन्त गौरव की बात है कि वैसे भयङ्कर दुर्भिक्ष में भी अजीमगंज व जियागंज के किसी भी व्यक्ति की अन्नाभाव से मृत्यु नहीं हुई।
जुलाई सन् १६४३ के कलाकत्ता गजट में सरकार ने आपकी उदारता व लोकहितकर भावना की प्रशंसा की । राजनैतिन, सामाजिक व धार्मिक शिक्षा सम्बन्धी प्रतियों में भी आप भाग लेते हैं । अपनी उदारदृष्टि के कारण
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