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________________ जैनगौरव -स्मृतियाँ ५५६ ती उन्नति की। अफीम के व्यवसाय में आपने समय के रुख को देख कर चीस पच्चीस लाख की हुंडिया लगा दी। इस समय भाग्य ने आपका पूरा साथ दिया । उस समय चीन में अफीम का भाव बहुत तेज हो गया और फलस्वरूप आपको दो तीन करोड़ का लाभ हुआ । परन्तु जब देखा किं अफीम का व्यापार घटता जा रहा है तो आप भी अपना रुख बदल कर रूई, अलसी चांदी एवं सोने आदि का व्यवसाय करने लगे और थोड़े ही समय में इन व्यवसायों में भी आपका नाम चमक उठा । आपका व्यापारिक साहस उन दिनों इतना बढ़ गया कि प्रतिदिन दस-बीस लाख की हारजीत कर लेना आपके लिए साधारण बात हो गई । बाजार भी आपके रुख के साथ ही चलने लगे और आपकी लेवा बेची से ही से देश के बाजारों में भाव का उतार चढाव होता था । इसी प्रकार आपने अपने जीवन में सट्टे के द्वारा काफी लाभ प्राप्त किया । गत महायुद्ध में आपने गेहूँ का ख्याल किया तब स्वयं चम्बई के गर्वनर महोदय को सेठसाहब को बुलाना पड़ा और आपसे कहा गया कि गेहूँ संसार का खाद्य पदार्थ है । इसका व्यापार आप इस रूप में न करें कि वह इतना मँहगा हो जाए। सेठ साहब ने गर्वनर महोदय की बात मानली " और अपना गेहूँ का सौदा बराबर कर लिया। इस कार्य के लिये गवर्नर महोदय ने आपको धन्यवाद दिया । इसी प्रकार चाँदी आदि के व्यवसाय में भी श्रापने व्यापारिक साहस का अपूर्व परिचय दिया । • 1 यही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भी अग्रसर होकर औद्योगिक भावनाओं को जागृत किया । वर्तमान में आपके द्वारा निम्न उद्योग चालू हैं - १. हीरा मिल्स लि० उज्जैन २. हुकमचन्द मिल्स लि० इन्दौर ३, राजकुमार मिल्स लि इन्दौर ४. हुकमचन्द जुट मिल्स लि० कलकत्ता । उद्योगधन्धो के अतिरिक्त आपकी भारत के प्रमुख व्यापारिक नगरों में फर्में स्थापित हैं, जहाँ बैकिंग कमिशन एजेन्सी का बड़े पैमाने पर व्यापार होता है । धार्मिकजीवन-व्यापारिक जीवन के अतिरिक्त व्यापका सार्वाजनिक एवं धार्मिकजीवन विशेष सराहनीय है । थापने सार्वाजनिक कार्यों के लिये और जैन समाज के लिए बहुत अधिक दान दिया है। आपके द्वारा संचालित विविध परोपकारिणी संस्थायें आपकी कीर्ति की विजय ध्वजा फहरा रही है । सेठसाहिब द्वारा संस्थापित दिगम्बर जैन मंदिरजी जैवरीयाग, विश्रान्ति भवन, महाविद्यालय, बोडिंगहाउस सौ० दानशीला कंचनबाई → श्राविकाश्रम, प्रिंस यवंतराव श्रायुर्वेदीय जैन श्रीपधालय, दि. जैन असहाय विधया सहायता फंड व भोजनशाला, सौः केचनवाई प्रसूतिगृह व शिशु स्वरा आदि संस्यायें है | सेठ साहब ने इनका कार्य बाने
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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