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ग्रन्थ के माननीय सहायक .
कौटुम्बिक परिचय :- आपकी प्रथम धर्मपत्नी से 'रत्नप्रभा' कन्या हुई -4 जिनका विवाह झालरापाटन निवासी रायबहादुर वाणिज्यभूषण लालचन्दजी . सेठी से हुअा। द्वितीय धर्मपत्नी का अल्पकाल में ही स्वर्गवास हो गया अतः तृतीत विवाह सं. १९६३ में भोपाल के सेठ फौजमलजी की सुपुत्री श्रीमती कञ्चनबाई के साथ हुआ जो इस समय वर्तमान हैं। आप पति परायणा, धर्मात्मा, विदुषी और परोपकारिणी महिला रत्न हैं।
__ श्रापकी माताजी को पौत्र का मुंह देखने की प्रबल इच्छा थी अतः अजमेर से कुवर हीरालालजी को सं० १६५६ में दतक लिया। सं०.१६७३ मैं हीरालालजी का विवाह धूम धाम से सम्पन्न हुआ । सं० १९८३ में . सेठ कल्याणमलजी का असामयिक स्वर्गवास होजाने से कुवर हीरालालजी को सं० १९८४ में उनकी धर्म पन्नी को सन्तुष्ट करने के लिए दत्तक दे दिया।
सं० १६६५ में सौ० कञ्चनबाई को एक कन्या रन प्राप्त हुई, जिसका नाम तारामती बाई रक्खा । इनका विवाह सं० १९७७ में अजमेर के सुप्रसिद्ध राय बहादुर सेठ भागचन्द्रजी सोनी के साथ हुआ।
सं० १६७० में आपके कुंवर श्री राजकुमारसिंह का जन्म हुआ। " इससे आपके सारे परिवार में अत्यन्त आनन्द हुआ और आपने अनेक प्रकार के दान धर्म भी किये। श्री कुवर राजकुमारसिंहजी की शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज में राजकुमारों के साथ सम्पन्न हुई। आप M. A. L, L. B. की उच्च शिक्षा से शिक्षित है। आपका विवाह सिवनी निवासी सेठ फूलचन्द जी की सुपुत्री राजकुमारी बाई के साथ हुआ। .. .
कुंवर राजकुमारसिंहजी से छोटी बहनें श्री चन्द्रप्रभावाई और स्नेहराजावाई है । जिनके विवाह क्रमशः इन्दौर के सेठ रतनलाल जी एवं सेठ लालचन्द जी के साथ हुये । सेठ साहब के पुण्योदय से सं० १९८७ में कुवर राजकुमारसिंहजी को भी एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इस अवसर पर सेठ जी ने ५० हजार रुपये दान किये। तदुपरान्त सं० १९८८ में द्वितीय' पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इस प्रकार आपका कौटुम्बिक जीवन सर्वसुख परि.
व्यापारिक जीवन :- श्री सेठ ओंकार जी, श्री सेठ तिलोकचन्द जी एवं श्री सेठ स्वरुपचन्द जी का व्यवसाय सम्मिलित था। सं० १६५७ में आपके परिवार वालों में बंटवारा होकर आपने “सेठ स्वरूपचन्द हुकुमचन्द के नाम । से व्यापार प्रारम्भ किया। वास्तव में आपका व्यापारिक जीवन यहीं से ... प्रारम्भ होता है। लगभग ३०-३५ वर्ष पूर्व मालवे में अफीम का प्रधान व्यवरया । आपने भी इस व्यापार को ही प्रारम्भ में अपनाया और आशाः