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जैन - गौरव स्मृतियाँ
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ग्रन्थ के माननीय सहायक ★ दानवीर रावराजा सर सेठ हुकमचन्दजी, इन्दौर
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संसार में सबसे बड़ा लक्ष्मीपति बन जाने की चाह वाला यह धनकुबेर आज उपार्जित अट द्रव्य को परोपकारी कार्यो में लगाने में दत्तचित्त है । ७५ वर्ष की उम्र के बाद समस्त सांसारिक बंधनों को छोड़ निर्मित संसारी की में अवस्था साधु का सा पवित्र जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
व्यापारिक जगन में उथल-पुथल मचाने वाले, अपनी व्यवहार कुशलता, व्यापारिक दक्षता, साहस एवं पुरुषार्थ से करोडों की सम्पत्ति उपार्जित करने वाले सर सेठ हुकमचन्दजी के पूर्वजों की जन्म भूमि मारवाड़ राज्यान्तर्गत लाइन जिले में मेडमिल नामक ग्राम था। संघ १८४४ में आपके पूर्वज 'माजी' इन्दौर प्राए और व्यवसाय का सूत्रपात किया। सेंट पूसाजी के प्रपौत्र सेठ चन्दजी के घर सं० १६३९ श्राह शुक्ल प्रतिपदा को सेठ हुकुमचन्द्रजी का जन्म हुआ ।
प्राचीन शिक्षाशैली के अनुसार व्यापारिक शिक्षा प्राप्त कर १४ वर्ष की वय में फर्म के कार्य में सहयोग देना प्रारम्भ किया। आपके भाग्य में तो लक्ष्मी का सहयोग यातः आपके व्यवसाय की
चौगुनी
वृद्धि होने लगी ।
आज "पेट स्वरुपचन्द में होती है। इसका सारा सर से
की गगन करोतियों जी को ही है।