________________
जैन-गौरव-स्मतियां
जैन संघ में आए हुए विकार को दूर करने की आवश्यकता है। लोकाशाहअपने विचारों को तत्कालीन जनता के सामने रक्खा । परम्परा से चली आती , हुई मूर्तिपूजा के विरोधी विचारों को सुन कर हलचल मच गई परन्तु लोकाशाह में अनेक युक्तियों और प्रमाणों से अपने मन्तव्य की पुष्टि की धीरे २ जनता उस और आकृष्ट होने लगी। शत्रुजय की यात्रा करके लौटते हुए एक विशाल संघ को . उन्होंने अपने उपदेश से प्रभावित कर लिया। हड़ संकल्प सत्य निष्ठा और उपदेश की सचोटता के कारण लोकाशाह सफल धर्म क्रान्तिकार हुए। सर्व प्रथम भाणजी
आदि ४५ पुरुषों ने लोकशाह के द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर प्रवृित्त करने के लिये दीक्षा धारण की । सं० १५३१ में एक साथ ४५ पुरुष लोकाशाह की आज्ञा से नवं प्रदर्शित साध्वाचार को पालन करने के लिये रात हुए । इसके वाद आचार की उग्रता के कारण इस सम्प्रदाय का प्रचार वायुवेग की तरह होने लगा और हजारों श्रावकों ने
अनुसरण किया ।
लोकाशाह के बाद ऋषि भाणजी, भीदाजी, नूताजी भीमाजी, गजमलजी (जगमालजी), सरवाजी, रूप ऋषिजी और श्री जीवाजी क्रमशः पट्टधर हुए। यह लोकाशाह के नाम से. लोकागच्छ कहलाया । लोकागच्छ के आचार्य जीवाजी के तीन शिष्य हुए-१ कुँवरजी की परम्परा में श्रीमलजी, रत्नसिंहजी, शिवजी ऋषिजी हुए। शिवजी ऋषिजी के संघराजजी और धर्मसिंहजी दो शिष्य हुए संघराज शृषि की परम्परा में अभी नृपचंदजी हैं। इनकी गादी बालापुर में है। धर्मसिंहजी म० की परम्परा दरियपुरी सन्प्रदाय कही जाती है। :: जीवाजी ऋषि के दूसरे शिष्य वरसिंहजी की परम्परा में पाटानुपाट ! केशवजी हुए। इसके बाद यह केशवजी का पक्ष कहलाने लगा इस पक्ष के यतियों की गादी बडोदा में है। इस पक्ष में यति दीक्षा छोड़कर तीन महापुरुष निकले जिन्होंने अपने २ सन्प्रदाय चलाये । वे प्रसिद्ध पुरुष हैं लवजी ऋषि, धर्मदासजी और हरजी ऋषि ।
जीवाजी ऋषि के तीसरे शिष्य श्री जगाजी के शिष्य जीवराजजी हुए। इस परम्परा से अमरसिंहजी म. शीतलदासजी म. नाथूरामजी म. स्वामीदासजी म. और नानकरामजी म. के सम्प्रदाय निकले।
लवजी ऋषि से कानजी ऋषिजी का सम्प्रदाय, खम्भात . सम्प्रदाय, पंजाब । सम्प्रदाय, रामरतनजी म. का सम्प्रदाय निकले। . धर्मदासजी म. के शिष्य श्री मूलचन्द्रजी म. से लिबड़ी सम्प्रदाय, गोंडल सायला सम्प्रदाय, चूडा सम्प्रदाय, बोटाद सम्प्रदाय, और कच्छ छोटा बडा पक्ष निकले । धर्मदासजी म. के दूसरे शिष्य धन्नाजी: म. से जयमलजी म. का सम्प्रदाय.. रघुनाथजी म. सम्प्रदाय और रनचन्द्रजी म. का सम्प्रदाय निकले । धर्मदासजी म...