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जैन- गौरव स्मृतियाँ
कालान्तर में चैत्यबासी अलग हुए। श्वेताम्बर संघ में अनेक गच्छ पैदा | दिगम्बर परम्परा में भी नाना पंथ प्रकट हुए। इस तरह निग्रन्थ परम्परा अनेक भेद प्रभेदों में विभक्त हो गई।
यहाँ संक्षेप से जैन सम्प्रदाय के मुख्य २ भेद प्रेभेदों का थोड़ा सा परिचय दिया जाता है ।
दिगम्बर सम्प्रदाय
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इस परम्परा का मूल बीज अचेलकत्व हैं । सर्व परिग्रह रहिततां की दृष्टि से वस्त्रर हतता ( नग्नता ) के आग्रह के कारण इस भेद का प्रादुर्भाव हुआ है । स्त्रियों की नग्नता अव्यावहारिक और अनिष्ट होने से यह स्त्रियों की प्रव्रज्या का निषेध करता है । इस परम्परा के अनुसार स्त्रियों को मोन नहीं होता । नग्नता, स्त्रीमुक्ति निषेध केवलिकवलाहार निषेध आदि बातों में श्वेतावरों से इनका भेद है । दिगम्बर परम्परानुसार उनकी वंशपरम्परा इस प्रकार है । तुलना की दृष्टि से साथ २ श्वेताम्बर परम्परा का भी उल्लेख कर दिया जाता है:
श्रुतकेवली
दशपूर्वरो
दिगम्बर
हावीर
सुधर्म
जम्बू
विष्णु
नंदी
अपराजित
गोवर्धन
भद्रबाहु
श्वेताम्बर । दिगम्बर महावीर विशारव सुधर्म प्रोष्टिल
जम्बू क्षत्रिय प्रभव | जयसेन शय्यंभव : नागसेन यशोभद्र ! सिद्धार्थ
वन्दीक
संभूतिविजय धृतिसेन भद्रबाहु | विजय
પુડ્ડ
दिगम्बर सम्प्रदाय में शुभचन्द्र
बुद्धिल गंगदेव
धर्मसेन
श्वेताम्बर
स्युलिभद्र महागिरि
सुहस्ति
गुणसुन्दर
कालक
स्कन्दिल देवतीमित्र
आर्य मंग.
प्यार्य धर्म
दोनों परम्पराओं के अनुसार भद्रबाहु अन्तिम श्रुतकेवली हुए । इसके बाद दिगन्धर परम्पनुसार पांच ग्यारह अंगधारी ( नक्षत्र, जयपाल, पावन और कैसे ) हुए इसके सुभद्र, यशोभद्र, शीबा और लोहार्य. एक अंधारी हुए |हां तक वीर निर्माण ६० पूर्ण हुआ हाद विच्छेद हो गया ।
भद्रगुम
श्रीगुम बच
समन्तभद्र, उमास्वाति, पूज्यपाद देवनदी ग्रनन्तकीर्ति, वीरसेन जिनसे गुम आदि