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जैन- गौरव - स्मृतियाँ
वर्षों तक यह सामञ्चस्य बराबर चलता रहा परन्तु बाद में दोनों पक्षों के अभिनिवे ( खिंचातानी ) के कारण नियन्थ परम्परा में विकृतियां आने लगीं । उसका परिणाम श्वेताम्बर और दिगम्बर नामक दो भेदों के रूप में प्रकट हुआ। वे भेद अबतक चले आ रहे हैं ।
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भारत के विस्तृत प्रदेशों में जैनधर्म का प्रसार हुआ । दक्षिण और उत्तरः पूर्व के प्रदेशों में दूरी का व्यवधान बहुत लम्बा हैं । प्राचीन काल में यातायात के साधन और संदेश व्यवहार की सुविधा न थी अतः प्रत्येक प्रांत में अपने अपने ढंग से संघों की संघटना होती रही। दुष्काल और अन्य परिस्थिति के कारण पूर्व प्रदेश में रहे हुए अनगारों के आचार विचार और दक्षिण में रहे हुए श्रमणों के आचार विचार में परिवर्तन होना स्वाभाविक ही था । काल प्रवाह के साथ यह भेद तीक्ष्ण होता गया । मत भेद इस सीमा तक पहुंचा कि दोनों पक्षों के सामंजस्य की सद्भावना बिल्कुल न रहीं तब दोनों पक्ष स्पष्ट रूप से अलंग २ हो गये वे दोनों किस समय और कैसे स्पष्ट रूप से अलग हो गये, यह ठीक ठीक नही कहा जा सकता है । दोनों पक्ष इस सम्बन्ध में अलग अलग मन्तव्य उपस्थित करते हैं और हर एक अपने आपको महावीर का सच्चा अनुयायी होने का दावा करता है और दूसरे को पथभ्रान्त मानता है । श्वेताम्बर मत के अनुसार दिगम्बर सम्प्रदायः की उत्पत्ति वीर निर्वाण संवत् ६०६ ( वि० सं० १३६, ईस्वी सन् -३ ) में हुई और दिगम्बरों के कथनानुसार श्वेताम्बरों की उत्पत्ति वीर निर्वाण सं० ६०६ ( वि० सं० १३६, ई० सन् ८० ) में हुई । इस पर से यह अनुमान किया जा सकता है कि निग्रन्थ परम्परा के ये दो भेद स्पष्ट रूप से ईसा की प्रथम शताब्दी के चतुर्थ चरण में हुए हैं ।
स्याद्वाद के अमोघ सिद्धान्त के द्वारा जगत् के समस्त दार्शनिक वादों का समन्वय करने वाला जैनधर्म कालप्रभाव से स्वयं मनाग्रह का शिकार हुआ | आपस में विवाद करने वाले दार्शनिकों और विचारकों का समाधान करने के लिये जिस न्यायाधीश तुल्य जैन धर्म ने अनेकान्त का सिद्धान्त पुरस्कृत किया था वही स्वयं आगे चलकर एकान्त बाद के चक्कर में फँस गया । सचेल और अचेल धर्म के एकान्त ग्रह में पड़कर निमन्थ परम्परा का अखन्ड प्रवाह दो भागों में विभक्त हो गया । इतने ही से खैर नहीं हुई, दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रतिद्वन्दि बनकर अपनी शक्ति को क्षीण करने लगे। दोनों में परस्पर विवाद होता. था और एक दूसरे का बल क्षीण किया जाता था । दिगम्बर सम्प्रदाय दक्षिण में फूला फला और श्वेताम्बर सम्प्रदाय उत्तर और पश्चिम में । दक्षिण भारत दिगम्बर, परम्परा का केंन्द्र बना रहा और पश्चिमी भारत श्वेताम्बर परम्परा का केन्द्र रहा
| आज तक दोनों परम्पराएँ अपने अपने ढंग पर चल रही है ।