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kikok kakkok जैन-गौरव-स्मृतियाँ kekotkekske karke
औद्योगिक और व्यवसायिक जगत् में जैनों का स्थान
जैनजाति प्रारम्भ से ही व्यापार-प्रधान रही है । इस समाज के नब्बे . प्रतिशत व्यक्ति व्यापार द्वारा जीवननिर्वाह करते हैं, और दस प्रतिशत व्यक्ति राज्यकर्मचारी हैं या अन्य नौकरी आदि साधनों से आजीविका चलाते हैं । इस समाज का बालक जन्मजात व्यापारिक संस्कारों के कारण व्यापार की ओर ही झुकता है। यही कारण है कि भारत के व्यापारिक
और औद्योगिक क्षेत्र में जैनों का अति उसस्थान रहा है और अब भी है। उस प्राचीनकाल में जबकि यातायात के साधनों की आजकल जैसी सुविधा न थी, इस समाज के व्यापारपरायण व्यक्ति दूर २ देशों में व्यापार के निमित्त जाया करते थे। जैनशास्त्रों में उल्लेख है कि हजारों वर्ष पहले इस धर्म के अनुयायी गृहस्थ समुद्रपार के देशों में व्यापार के निमित्त जाया करते थे । हजारों पोत (जहाज) विदेशों में माल ले जाते थे और वहाँ से लाते थे। विदेशों में व्यापार करने के साथ ही साथ ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जैनसंस्कृति का प्रचार भी करते थे। आजकल विदेशों में जो थोडे बहुत जैनअवशेष प्राप्त होते हैं वे यही सूचित करते हैं।
व्यापार के प्रति जन्मजात चाव होने से तथा बुद्धिमत्ता और साहस के कारण जैनों ने विपुल सम्पत्ति उपार्जित की है। आजकल भी भारत की